Saturday, March 16, 2013

प्यार को तन से नहीं आत्मा में जी पाते


राह में चलते हुए दो लोग,
हाथों में हाथ, होठों पर मुस्कान,
दुनिया से बेखबर, खुद में चूर, चले जा रहे थे,

आँखों से एक दूसरे को जिए जा रहे थे,
तभी उसने पकड़ लिया दूसरे का हाथ,
अपने होंठों पर ले गया और छू लिया होंठों को,
प्रेमिका कसमसाई दी दुनिया की दुहाई,
बोलीभरी सड़क है, यूँ बेपर्दा करो,
मेरे प्यार को बदनाम करो
प्रेमी बोला, “यूँ तुम कैसे बाते करने लगी,
फिर से घिसी पिटी परम्परा की दुहाई देने लगी,
मैं तुमसे प्यार करता हूं, हक है मेरा तुम पर,”
वो बोली, “सच है, मैं भी करती हूं तुमसे प्यार,
तुम पर करती हूं जान निसार,
पर भरी सड़क यूँ बेपर्दा नहीं हो सकती,
अपनी ही निगाहों से नहीं गिर सकती,
गर करते तुम मुझसे सच्चा प्यार,
तो करते यूँ बेगैरत व्यवहार
कहकर वो चली गई,
लेकिन मेरे दिमाग में आज से
कई साल पहले के प्यार के दौर को ताजा कर गई,
जब यूँ ही चलते चलते अचानक कोई अच्छा लगने लगता था,
मैंने देखा था ऐसे ही एक जोड़े को उस मासूम प्यार के दौर में,
वो बैठे थे दूर दूर, इतने दूर कि लडकी की चुन्नी और
खुले बाल भी प्रेमी तक उड़ कर नहीं जा पा रहे थे,
बस प्यार के अनकहे लम्हे ही कुछ दास्ताँ बतला रहे थे,
लडके के दोस्तों ने ऊससे पूछा कि क्यों नहीं उसने नशीला जाम पिया,
उसने हंस कर कहामैंने है उससे सच्चा प्यार किया,
कैसे उसे अपने हाथ लगाकर अपवित्र कर दूं,
गर वो किस्मत में है तो एक दिन उसे तन मन से अपनाऊंगा,
गर नहीं तो इस सुकून में तो जी पाऊंगा,
कि प्यार को मैंने प्यार ही रखा,
प्यार की देवी को मैंने पावन ही रखा
काश, आज के प्यार करने वाले फिर से वही प्यार जी पाते,
प्यार को तन से नहीं आत्मा में जी पाते.

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